US President Donald Trump: पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर अपनी बेबाक टिप्पणी से हलचल मचा दी है। इस बार उन्होंने सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को “पाकिस्तान का लीडर” कह दिया है। ट्रंप की यह टिप्पणी ना केवल पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार पर सवाल खड़े करती है, बल्कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की अंतरराष्ट्रीय मान्यता पर भी गंभीर संकेत देती है।

ट्रंप ने क्या कहा?

एक प्रेस मीटिंग के दौरान ट्रंप ने साफ कहा —”मुनीर ने युद्ध में आगे न बढ़ने का निर्णय लिया। हमने पाकिस्तान के लीडर से बात की और समझौते की दिशा में चर्चा की।” ट्रंप के इस बयान में उन्होंने किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति का ज़िक्र तक नहीं किया — सीधा नाम सिर्फ जनरल मुनीर का।

क्या अमेरिका अब पाकिस्तान की लोकतांत्रिक सरकार को मान्यता नहीं देता?

ट्रंप के इस बयान के बाद यह बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है…क्या अमेरिका अब पाकिस्तान के चुने हुए नेताओं को नजरअंदाज़ कर रहा है? कई रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि हाल ही में पाकिस्तान से अमेरिका के लिए कोई आधिकारिक प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति दौरा शेड्यूल नहीं था, लेकिन जनरल मुनीर को सीधे ट्रंप और अन्य अमेरिकी अधिकारियों से मीटिंग का न्योता मिला।

पाकिस्तान की “लोकतंत्र बनाम वर्दी” की हकीकत

ये कोई पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में सेना की ताकत लोकतंत्र पर भारी पड़ी हो। दशकों से पाकिस्तान में असली सत्ता का केंद्र आर्मी हेडक्वार्टर ही रहा है। ट्रंप की टिप्पणी ने इस सच्चाई को और ज्यादा उघाड़ कर रख दिया है। एक लोकतांत्रिक देश में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की जगह सेना प्रमुख से अमेरिका बातचीत करे — यह खुद अपने आप में डिप्लोमैटिक असंतुलन को दर्शाता है।

भारत-पाक व्यापार समझौते पर क्या बोले ट्रंप?

ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच एक संभावित व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है। हालांकि, उन्होंने यह नहीं बताया कि इसमें भारतीय पक्ष की कोई सहमति है या नहीं। लेकिन यह जरूर कहा कि पाकिस्तान की ओर से बातचीत में मुनीर ही नेतृत्व कर रहे हैं।

क्या यह पाकिस्तान की सियासी तस्वीर का आईना है?

ट्रंप के इस बयान ने सिर्फ एक नाम नहीं लिया, बल्कि पूरी दुनिया को यह फिर से याद दिला दिया है कि पाकिस्तान में असली ताकत सेना के पास है। जब अमेरिका जैसे देश लोकतांत्रिक सरकार को दरकिनार कर सेना प्रमुख को ही “लीडर” कहें, तो यह सिर्फ पाकिस्तान के लिए नहीं, बल्कि लोकतंत्र की अवधारणा के लिए भी एक बड़ा सवाल है।

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