देहरादून: उत्तराखंड में हेलीकॉप्टर दुर्घटनाएं लगातार मासूम जिंदगियों को निगल रही हैं, लेकिन सरकार और प्रशासन की चुप्पी अब कई सवाल खड़े कर रही है। बीते दो महीनों में पांच हेली हादसे हो चुके हैं, जिनमें कई लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन इसके बावजूद उन्हीं हेली कंपनियों को चारधाम यात्रा के लिए उड़ान भरने की अनुमति दी जाती है।

हेलीकॉप्टर हादसों का कारण हर बार तकनीकी खराबी बताकर मामले को दबा दिया जाता है, लेकिन इन घटनाओं की असल जड़ हेली कंपनियों की लापरवाही और सुरक्षा मानकों की अनदेखी है।

न रडार, न मॉडर्न नेविगेशन सिस्टम

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में उड़ने वाले अधिकांश हेलीकॉप्टरों में रडार, सैटेलाइट कम्युनिकेशन या आधुनिक नेविगेशन सिस्टम तक नहीं हैं। जबकि व्यावसायिक उड़ानों में यह बेसिक सेफ्टी उपकरण माने जाते हैं।

पायलट आपस में करते हैं कॉल पर मौसम की जानकारी साझा

चौंकाने वाली बात यह है कि यहां के पायलट आपस में मोबाइल फोन के जरिए मौसम और ऊंचाई की जानकारी लेकर उड़ान भरते हैं। नतीजा यह होता है कि जब अचानक मौसम बिगड़ता है, तो हेलीकॉप्टर फंस जाते हैं और हादसे हो जाते हैं।

सरकार की चुप्पी पर सवाल

सरकार पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब लगातार हादसे हो रहे हैं, तो ऐसी कंपनियों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? क्या चारधाम यात्रा जैसी संवेदनशील सेवा में उड़ान भरने के लिए सुरक्षा मानकों की कोई अहमियत नहीं है? बीते रविवार को एक हेलीकॉप्टर केदारनाथ से लौटते वक्त गौरीमाई खर्क के जंगल में क्रैश हो गया, जिसमें एक मासूम बच्ची सहित सात लोगों की मौत हो गई। यह हादसा भी खराब मौसम की वजह से हुआ बताया जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि जब मौसम खराब था, तो उड़ान की अनुमति किसने दी?

जरूरत है सख्त निगरानी और तकनीकी मानकों की अनिवार्यता की

उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पहाड़ी राज्य में हेलीकॉप्टर सेवा को लेकर सख्त नियम, तकनीकी अपग्रेडेशन और निगरानी की व्यवस्था जरूरी है। वरना ऐसे हादसों का सिलसिला जारी रहेगा और इसकी कीमत मासूम जिंदगियों को चुकानी पड़ेगी।

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