राहुल गाँधी भारी मतों से रायबरेली से जीत तो गए परंतु उनके लिए चुनौतियाँ भी कुछ कम नहीं है . यूपीए शासनकाल के दौरान रायबरेली में बड़ी संख्या में शुरू हुईं विकास योजनाएं अभी भी अधूरी है नवनिर्वाचित सांसद राहुल गांधी के सामने इन्हें पूरा कराने की मुश्किल चुनौती है.

प्रयागराज से रायबरेली हाईवे पर ऊंचाहार शहर में करीब 20 किलोमीटर चलने पर दाहिनी ओर नहर पर अधूरे पड़े दो पुल सरकारी उपेक्षा की पहली झलक पेश करते हैं. हाईवे के किनारे स्थित कुचरिया गांव से होते हुए इस पुल की तरफ जाने वाली मिट्टी की कच्ची सड़क बताती है कि इसी रास्ते हवा में लटके पुलों को प्रयागराज-रायबरेली हाईवे से जोड़ा जाना था. 

अधूरी पड़ी रिंग रोड के किनारे बसे करीब 20 गांवों में रहने वाले लोग विकास की राह तक रहे हैं. करीब 17 किलोमीटर लंबी इस अधूरी रिंग रोड पर अलग-अलग जगहों पर हवा में लटके आठ पुल स्पष्ट इशारा करते हैं कि किस तरह रायबरेली के रुके हुए प्रोजेक्ट अपने दिन बहुरने का इंतजार कर रहे हैं.

हाईवे पर टोल गेट पार करते ही प्रसिद्ध चुरवा चौराहे से बाईं ओर जाने वाली संकरी सड़क के मुहाने पर लगा नाइपर का हरा बोर्ड करीब छह किलोमीटर की दूरी पर हो रहे निर्माण कार्य की सूचना देता है.  यूपीए शासनकाल में सांसद सोनिया के प्रयास से रायबरेली में नाइपर की स्थापना के लिए 2012 में कवायद शुरू हुई थी. स्वयं के भवन का निर्माण होने तक रायबरेली के आईटीआई परिसर में नाइपर का संचालन शुरू हुआ. 2013 में बछरावां विकास खंड के विनायकपुर गांव में नाइपर के निर्माण के लिए 48 एकड़ जमीन मुफ्त मुहैया कराई गई थी. जमीन मिलने के बाद 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और नाइपर के नए भवन का निर्माण अटक गया. इसके साथ ही आईटीआई रायबरेली में चल रहे नाइपर को लखनऊ के सरोजनी नगर इलाके में मौजूद एक संस्थान के परिसर में स्थानानंतरित कर दिया गया. 

वर्ष 2014 में सत्ता से बाहर होने के बाद सोनिया को अपने संसदीय क्षेत्र रायबरेली में कुछ ऐसी ही दिक्कतों का सामना करना पड़ा. रायबरेली के एक पुराने कांग्रेसी नेता बताते हैं, हम लोगों ने अधिकारियों से कहा है कि रायबरेली में अधूरे पड़े प्रोजेक्ट के संबंध में वे वर्तमान सांसद राहुल गांधी जी से जो मदद चाहते हैं वो बताएं ताकि उसपर आगे प्रयास किया जा सके. लेकिन डर के मारे अधिकारी कुछ भी करने से बचते हैं.

 रायबरेली से जगदीशपुर मार्ग पर अमावां ब्लाक में सीबीएसई टीचर्स ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की स्थापना की कवायद वर्ष 2012 में शुरू हुई. चार साल पहले करीब 15 करोड़ रुपए की लागत से प्रशासनिक भवन और इसके बगल में हॉस्टल की सुविधा समेत ट्रेनिंग ब्लॉक बनकर तैयार हो गया. मार्च में ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में निदेशक समेत अन्य प्रशासनिक स्टाफ तैनात हुए लेकिन अभी तक शिक्षकों का प्रशिक्षण नहीं शुरू हो पाया है. ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट के सामने मौजूद आकाशवाणी के रिले सेंटर में एफएम स्टूडियो भी नहीं बन पाया है. राजनीति में सुस्ती बहुत भारी पड़ती है क्योकि जनता की आकांक्षाओं पर यदि खरा नहीं उतरा जाता है तो जनता वक्त आने पर अयोध्या की तरह सबक देने में देर भी नहीं करती है.

लेखक – मुनीष त्रिपाठी,पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार है

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