नई दिल्ली: 3 सितंबर, 2025 को जीएसटी परिषद ने ऐतिहासिक सुधार को मंजूरी दी, जिसके तहत पहले के बहु-स्तरीय जीएसटी ढांचे को दो मुख्य स्लैब में समेकित किया गया है – 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत, जबकि “पाप संबंधी” (sin) वस्तुओं पर उच्च दर लागू रहेगी। रोजमर्रा की वस्तुओं पर कर दरें कम की गई हैं, अनुपालन प्रक्रियाओं को सरल बनाया गया है, और संदेश स्पष्ट है: भारत अब एक ऐसे कर प्रणाली की ओर बढ़ रहा है जो न केवल बाज़ार को एकीकृत करता है, बल्कि खपत और औपचारिकरण दोनों को बढ़ावा देगा।
GST 1.0 का सफर:
जुलाई 2017 में भारत ने एक साहसिक कदम उठाया, जब विभिन्न केंद्रीय और राज्य करों – उत्पाद शुल्क, सेवा कर, वैट, ऑक्ट्रॉय आदि को मिलाकर एक गंतव्य-आधारित जीएसटी लागू की गई। यह dual GST मॉडल राज्यों और केंद्र के साझा प्रशासन में काम करता है। आलोचकों ने इसे जटिल बताया, लेकिन यह वास्तव में व्यावहारिक निर्णय था। कई स्लैब होना दोष नहीं, बल्कि आवश्यकता थी, ताकि गरीब परिवारों पर कर बोझ कम हो और महंगे उत्पादों पर उच्च कर लगाया जा सके।
समय और क्षमता के अनुसार सुधार:
2017 में राज्यों को शामिल करना और उनका विश्वास जीतना महत्वपूर्ण था। धीरे-धीरे परिषद ने दरों को समायोजित किया, तकनीकी आधार मजबूत किया – ई-वे बिल और ई-इनवॉइसिंग जैसी प्रक्रियाएं लागू की गईं। अब, 2025 में, इस मजबूत आधार पर जीएसटी को सरल बनाने का समय आ गया है।
GST 2.0 के लाभ:
- उपभोक्ताओं के लिए राहत: व्यापक वस्तुओं और सेवाओं पर कम दर, जबकि “पाप संबंधी” वस्तुएँ उच्च दर पर।
- सुलभ प्रशासन: केवल दो स्लैब होने से इनवॉइस विवाद कम होंगे, ऑडिट तेज़ होंगे और कार्यशील पूंजी फंसने से बचेगी।
- औपचारिककरण और कर संग्रह में वृद्धि: अनुपालन अब आसान मार्ग बनेगा।
- उद्यमिता को बढ़ावा: नई कंपनियों के लिए अनुपालन लागत कम होगी।
व्यापक तस्वीर:
पिछले दशक में भारत ने दुनिया की शीर्ष चार अर्थव्यवस्थाओं में स्थान बनाया है। जीएसटी सुधार न केवल व्यापारियों के लिए लाभकारी है, बल्कि आम जनता के लिए भी सरल और सुलभ कर प्रणाली सुनिश्चित करता है।