नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी ने दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सौरभ भारद्वाज और सत्येंद्र जैन के खिलाफ दर्ज एफआईआर को छिपाने पर सवाल खड़ा किया है। “आप” ने पूछा है कि आखिर एफआईआर को क्यों दबाया जा रहा है और एफआईआर को छिपाकर प्रेस नोट मीडिया में क्यों जारी किए जा रहे हैं? “आप” ने पूछा है कि क्या एफआईआर में कुछ भी खास नहीं है या इतनी बेतुकी है कि भाजपा को डर है कि इसे सार्वजनिक करने पर देशभर में वह मजाक का पात्र बन जाएगी? “आप” ने आरोप लगाया कि एजेंसियों का दुरुपयोग कर हमारे नेताओं को बदनाम करने की साजिश की जा रही है। “आप” ने सरकारी दस्तावेजों का हवाला देते हुए कहा कि एसीबी के अपने ही रिकॉर्ड बताते हैं कि संबंधित परियोजनाएं 2017-18 में स्वीकृत हुईं और हॉस्पिटल इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (एचआईएमएस) की घोषणा 2016-17 में हुई थी। तब सौरभ भारद्वाज मंत्री नहीं थे। सौरभ भारद्वाज तो 2023 में मंत्र पद संभाला था।
इस मुद्दे पर “आप” के वरिष्ठ नेता व दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सौरभ भारद्वाज ने कहा कि 24 जून, 2025 को उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने एक प्रेस नोट जारी किया और गुरुवार को दिल्ली एसीबी प्रमुख मधुर वर्मा (जेसीपी) ने भी मीडिया के लिए प्रेस नोट जारी किया। आपराधिक मामलों में सामान्य प्रथा होती है कि एफआईआर को मीडिया के साथ साझा किया जाता है। लेकिन उपराज्यपाल और एसीबी जानबूझकर एफआईआर को छिपा रहे हैं, क्योंकि इससे खुलासा हो जाएगा कि भाजपा सरकार किस तरह कानून का मजाक बना रही है।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि एफआईआर से साफ हो जाएगा कि बिना किसी ठोस कारण के बेवजह दो पूर्व मंत्रियों को निशाना बनाया गया है, जबकि अस्पताल परियोजनाओं को लागू करने वाले सभी स्वास्थ्य और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के अधिकारियों को छोड़ दिया गया है।
वहीं, “आप” के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा कि उपराज्यपाल का 24 जून, 2025 का प्रेस नोट कुछ परियोजनाओं का जिक्र करता है, जो 2018-19 और 2021 में स्वीकृत हुईं। दूसरी ओर, एसीबी प्रमुख का प्रेस नोट सिर्फ 2017-18 में स्वीकृत 24 परियोजनाओं की बात करता है। जबकि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि सौरभ भारद्वाज मार्च 2023 में मंत्री बने थे।
सत्येंद्र जैन ने कहा कि अभी तक कोई सबूत नहीं है जो यह बताए कि इन परियोजना स्वीकृतियों में भ्रष्टाचार हुआ था। इसके अलावा, ये सभी स्वीकृतियां सौरभ भारद्वाज के मंत्री बनने से दो से पांच साल पहले की हैं। फिर एक मंत्री को उन कार्यों के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जो उनके कार्यकाल से पहले हुए? क्या यह कोई मजाक किया जा रहा है?
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि एसीबी प्रमुख मधुर वर्मा द्वारा भ्रष्टाचार का एक और कथित उदाहरण हॉस्पिटल इंफॉर्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम (एचआईएमएस) से जुड़ा है, जिसकी घोषणा 2016-17 में हुई थी, जबकि मैं 2023 में मंत्री बना। पहली बात, उस घोषणा में भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं है। दूसरी बात, यह समझ से परे है कि मुझे इन कथित अपराधों के लिए कैसे जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?
सौरभ भारद्वाज ने एक्स पर कहा कि सभी जानते हैं कि मैं तो 2023 में मंत्री बना। 2018-19 में सैंक्शन हुए हॉस्पिटल प्रोजेक्ट के मामले में मुझे कैसे आरोपी बनाया? 2016-17 में एचआईएमएस की घोषणा से मैं कैसे आरोपी बना ? 24 जून 2025 को दिए गए दिल्ली के एलजी के प्रेस नोट और आज दिए एसीबी चीफ के प्रेस नोट पर कुछ प्रश्न हैं । आशा है कि एलजी साहब जवाब देंगे।