Opinion | कांग्रेस सांसद शशि थरूर, जो तिरुवनंतपुरम से संसद सदस्य हैं, एक बार फिर चर्चा में हैं। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की वैश्विक कूटनीति—”ऑपरेशन सिंदूर”—में उनकी प्रमुख भूमिका ने कांग्रेस पार्टी के भीतर असहजता पैदा कर दी है। हालांकि उन्होंने सरकार की पहल का समर्थन किया, लेकिन पार्टी नेतृत्व के साथ उनके मतभेद स्पष्ट हो गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की आवाज
थरूर के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने अमेरिका, जापान और गुयाना जैसे देशों का दौरा किया, जहां उन्होंने पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ भारत की स्थिति को स्पष्ट किया। न्यूयॉर्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में उन्होंने कहा, “हम सरकार के लिए काम नहीं करते, लेकिन जब राष्ट्रहित की बात आती है, तो हम एकजुट होते हैं।” उन्होंने भारत की “सटीक और संतुलित” प्रतिक्रिया की सराहना की, जिसमें पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर लक्षित हमले शामिल थे।
कांग्रेस के भीतर मतभेद
थरूर की इस भूमिका ने कांग्रेस पार्टी के भीतर मतभेद उजागर किए हैं। पार्टी नेतृत्व, विशेष रूप से राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे, ने चार अन्य सांसदों के नाम सुझाए थे, लेकिन सरकार ने केवल आनंद शर्मा को शामिल किया। वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने बिना नाम लिए टिप्पणी की, “कांग्रेस में होना और कांग्रेस का होना, दो अलग-अलग बातें हैं।”
आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल
2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव में थरूर ने मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ चुनाव लड़ा था। हालांकि खड़गे ने जीत हासिल की, लेकिन थरूर ने 1,072 वोट प्राप्त किए। थरूर की टीम ने उत्तर प्रदेश में “गंभीर अनियमितताओं” का आरोप लगाया था, जिससे पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल उठे।
शशि थरूर की स्थिति कांग्रेस पार्टी के भीतर एक दुविधा को दर्शाती है—जहां एक ओर वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की प्रभावी आवाज हैं, वहीं दूसरी ओर पार्टी के भीतर उनकी स्वतंत्र सोच को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है। यह कांग्रेस के लिए आत्ममंथन का समय है: क्या पार्टी स्वतंत्र विचारों को स्थान देगी, या केवल परंपरागत निष्ठा को प्राथमिकता देगी?