Narak Chaturdashi News. दिवाली के ठीक एक दिन पहले मनाई जाने वाली छोटी दिवाली, जिसे नरक चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है, भारतीय परंपरा में एक विशेष पर्व है। यह पर्व कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है और इसका महत्व दीपावली के जितना ही गहरा है। इस दिन अंधकार पर प्रकाश और पाप पर पुण्य की विजय का प्रतीक माना जाता है। आइए जानते हैं कि छोटी दिवाली क्यों मनाई जाती है, इसका नाम नरक चतुर्दशी या रूप चौदस क्यों पड़ा और इस दिन किसकी पूजा की जाती है।
छोटी दिवाली क्यों मनाते हैं?
पौराणिक कथा के अनुसार, नरकासुर नामक एक शक्तिशाली और अहंकारी दैत्य था, जिसने अपनी शक्ति के घमंड में 16,000 से अधिक कन्याओं को बंदी बना लिया था और देवताओं तक को परेशान कर दिया था। जब उसके अत्याचार बढ़ गए, तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी माता सत्यभामा के साथ मिलकर नरकासुर का वध किया। यह युद्ध कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन हुआ और इस दिन नरकासुर का अंत हुआ, इसलिए इसे ‘नरक चतुर्दशी’ के नाम से जाना गया।
रूप चौदस क्यों मनाते हैं?
भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और जब वे स्नान कर लौटे, तो उनके शरीर पर तेल और धूल लगी हुई थी। उन्होंने स्नान के बाद उबटन किया, और तभी से इस दिन तेल मालिश और स्नान करने की परंपरा शुरू हुई। इस दिन तेल मालिश और स्नान से शरीर की शुद्धि होती है, मन पवित्र होता है और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। इसी कारण नरक चतुर्दशी को रूप चौदस भी कहते हैं।
नरक चतुर्दशी पर क्या करना चाहिए?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, नरक चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल स्नान करने, दीपदान करने और यमराज की पूजा करने से पापों का नाश होता है और अकाल मृत्यु का डर भी दूर होता है। इस दिन शाम को घर के बाहर दीप जलाने का विशेष महत्व है, क्योंकि यह दीप नरक और अंधकार से मुक्ति का प्रतीक माना जाता है।
छोटी दिवाली का दूसरा पहलू
छोटी दिवाली, दिवाली की पूर्व संध्या होती है। इस दिन घर की सफाई, साज-सज्जा और पूजा की तैयारियां पूरी कर ली जाती हैं। कई जगहों पर लोग इस दिन भूत-प्रेत और नकारात्मक शक्तियों से बचने के लिए दीप जलाते हैं और घर में सकारात्मक ऊर्जा का स्वागत करते हैं।
छोटी दिवाली, नरक चतुर्दशी या रूप चौदस, एक ऐसा अवसर है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर और पाप से पुण्य की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देता है। यह दिन शरीर और आत्मा की शुद्धि का भी प्रतीक है।