Digital India News. बिहार के बांका ज़िले के एक छोटे से गांव दलिया में हर शुक्रवार को एक अनोखा नज़ारा देखने को मिलता है। गांव के पुरुष और महिलाएं एक जगह इकट्ठा होते हैं, अपने मोबाइल वॉलेट में पैसे डालने, बिजली-पानी के बिल भरने, बीमा प्रीमियम जमा करने और बच्चों को शहर पैसे भेजने के लिए। मदद करता है एक आदमी-गांव का बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट।
ऐसे ही लाखों बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट्स (BCs) देशभर के टियर-4 और ग्रामीण इलाकों में लोगों को डिजिटल बैंकिंग और फाइनेंशियल समावेशन से जोड़ रहे हैं। गांव-गांव में पैदल घूमते या केंद्र से काम करने वाले ये लोग ही भारत के ‘डिजिटल-प्रथम भविष्य’ की असली नींव बन गए हैं।
ग्रामीणों का भरोसा बना डिजिटल चौपाल
शुरुआत में डिजिटल पेमेंट्स को लेकर सशंकित रहने वाले ग्रामीणों ने जैसे ही इसकी सरलता और सुरक्षा को महसूस किया, वे नकदी से टैप और क्लिक की ओर बढ़ चले। अब वे मोबाइल वॉलेट से बिजली बिल भरते हैं, यूपीआई से सब्जीवाले को पैसे देते हैं और बीमा की किश्तें डिजिटल माध्यम से चुकाते हैं।
पेमेंट बैंक और डिजिटल बीसी नेटवर्क के चलते यह बदलाव अब गांवों में भी आम बात हो गई है।
UPI बना बदलाव का मुख्य इंजन
2016 में लॉन्च हुआ यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) आज भारत का सबसे सशक्त पेमेंट प्लेटफॉर्म बन गया है। अक्टूबर 2024 में UPI पर 16.58 अरब लेन-देन हुए, जिसकी कुल वैल्यू ₹23.49 लाख करोड़ रही। एक साल पहले अक्टूबर 2023 में यह आंकड़ा 11.40 अरब था – यानी 45% की वार्षिक वृद्धि।
आज UPI के जरिए 632 बैंक जुड़े हुए हैं। QR कोड, मोबाइल नंबर, और UPI ID से ट्रांजैक्शन करना इतना आसान है कि गांव की दादी से लेकर छोटे किराना दुकानदार तक इसका नियमित उपयोग कर रहे हैं।
डिजिटल भुगतान में विस्फोटक वृद्धि
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, डिजिटल ट्रांजैक्शन की कुल संख्या 2017-18 में 2,071 करोड़ थी, जो 2023-24 में 18,737 करोड़ पहुंच गई — CAGR 44%। वहीं ट्रांजैक्शन का कुल मूल्य ₹1,962 लाख करोड़ से बढ़कर ₹3,659 लाख करोड़ हो गया है — CAGR 11%।
इस तेजी का मुख्य कारण है मजबूत डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर—UPI, आधार, e-KYC, और इंटरऑपरेबिलिटी जैसे तंत्र, जिनके जरिए देशभर में डिजिटल लेनदेन का अनुभव सरल और सुरक्षित हुआ है।
रुपे कार्ड और स्मार्टवॉच पेमेंट्स: गांवों की नई पहचान
डिजिटल भुगतान की पहुंच अब स्मार्टवॉच और फेस रिकग्निशन तक आ गई है। ‘रुपे ऑन-द-गो’ जैसे कार्ड और NCMC (नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड) अब मेट्रो, बस, टोल, पार्किंग से लेकर दुकानों तक उपयोग में लाए जा रहे हैं।
भविष्य की सोच रखने वाले पेमेंट बैंक्स अब अपने नेटवर्क को गांवों तक फैला रहे हैं, ताकि डिजिटल बैंकिंग की सुविधा हर नागरिक तक पहुंच सके।
ग्लोबल ट्रेंड से भी आगे भारत
McKinsey की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में कैश का इस्तेमाल हर साल 4% घट रहा है। लेकिन भारत जैसे देश में, जहां कार्ड उपयोग अभी भी सीमित है, वहां रीयल टाइम डिजिटल पेमेंट्स ने नकद की जगह तेजी से ले ली है।
भारत की यह मॉडल सफलता अब अन्य विकासशील देशों के लिए भी मिसाल बन रही है।
गांवों से निकला डिजिटल भारत
यह बदलाव सिर्फ तकनीकी नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूपांतरण है। गांवों के वे बिजनेस कॉरेस्पॉन्डेंट, जिनके पास ना बड़ा दफ्तर है, ना कोई मार्केटिंग बजट—वे भारत की इस डिजिटल क्रांति के नायक हैं।
अब सवाल नहीं, बदलाव तय है। और यह बदलाव शुरू होता है बांका जैसे गांवों से—जहां हर शुक्रवार अब ‘डिजिटल शुक्रवार’ बन गया है।