राहुल गांधी ने विपक्ष के नेता के तौर पर संसद में अपना पहला भाषण देते हुए अपने आक्रामक तेवर दिखाए। लेकिन सुलह का रास्ता अपनाना लंबे समय में ज़्यादा फ़ायदेमंद साबित हो सकता था

नवनियुक्त विपक्ष के नेता के रूप में अपने प्रथम भाषण में, राहुल गांधी बहुत कुछ बोला। 1 जुलाई को संसदराष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव के दौरान उन्होंने 100 मिनट से ज़्यादा समय तक भाषण दिया। यह सोचना मुश्किल था कि क्या यह एक स्पष्ट मौखिक अतिशयोक्ति थी या एक परम आवश्यकता।
राहुल के भाषण पर दोनों तरफ़ से चीयरलीडर्स होंगे जो अतिवादी रुख़ अपनाएंगे। वैसे भी पिछले कुछ सालों से दुनिया भर में राजनीति संकीर्ण द्विआधारी समीकरणों पर काम करने लगी है। पिछले हफ़्ते ट्रंप-बाइडेन द्विआधारी समीकरण सामने आया। फ्रांस में मरीन ले पेन-मैक्रॉन द्विआधारी समीकरण ने एक नया आयाम ले लिया है। यूरोप के बाकी देश भी इस अनुभव से अछूते नहीं रहे। हाल के हफ़्तों में यह बात और भी स्पष्ट हो गई जब यूरोपीय संसद ने नए सदस्यों का चुनाव किया।

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