उत्तर प्रदेश की राजनीति में मिल्कीपुर विधानसभा सीट पर होने वाला उपचुनाव चर्चा का केंद्र बन गया है। इस सीट पर 5 फरवरी को मतदान और 8 फरवरी को मतगणना होगी। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच सीधा मुकाबला होने की संभावना है। सवाल यह है कि क्या सपा घोसी विधानसभा सीट की तरह मिल्कीपुर में भी अपना दबदबा कायम रख पाएगी, या भाजपा इस सीट पर जीत दर्ज कर सपा को कड़ी चुनौती देगी।

मिल्कीपुर सीट का महत्व

मिल्कीपुर विधानसभा सीट अयोध्या जिले में आती है और इसका राजनीतिक और सामाजिक महत्व काफी अधिक है। यहां विभिन्न जातियों और समुदायों का प्रभाव है, जो चुनावी नतीजों को निर्णायक बना सकता है। यह सीट मौजूदा विधायक अवधेश प्रसाद के सांसद बन जाने के बाद यह सीट रिक्त हुई थी, और उपचुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी सपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा की लड़ाई बन चुकी है।

सपा से अजीत प्रसाद भाजपा का प्रत्याशी अभी तय नहीं

समाजवादी पार्टी ने पूर्व विधायक और सांसद अवधेश प्रसाद के बेटे अजीत प्रसाद को मैदान में उतारा है। लेकिन अभी तक भाजपा ने इस सीट पर अपने पत्ते नहीं खोले है। प्रबल दावेदारी के रूप में पूर्व विधायक बाबा गोरखनाथ, जिला पंचायत सदस्य चन्द्रभानु पासवान व पूर्व विधायक रामु प्रियदर्शी के नामों की चर्चा है। वहीं इस सीट पर लगभग 2 दर्जन से अधिक लोगों ने अपने नाम पार्टी को भेजे गए है।

घोसी में सपा की ऐतिहासिक जीत

हाल ही में हुए घोसी उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने शानदार जीत दर्ज की थी। इस जीत ने सपा के कार्यकर्ताओं और समर्थकों का हौसला बढ़ा दिया है। घोसी में भाजपा के खिलाफ विपक्षी गठबंधन का प्रभाव साफ तौर पर दिखा, और सपा ने अपनी रणनीति और गठबंधन के बल पर सीट अपने नाम की। अब सवाल यह है कि क्या सपा मिल्कीपुर में भी वही रणनीति अपनाकर भाजपा को हरा पाएगी।

भाजपा की रणनीति

भाजपा के लिए मिल्कीपुर सीट पर जीत दर्ज करना अहम है। यह न केवल अयोध्या जिले में पार्टी की पकड़ मजबूत करेगा, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला होगा। भाजपा अपने विकास कार्यों और केंद्र की योजनाओं को जनता के सामने रखकर वोट मांगने की तैयारी में है। इसके साथ ही पार्टी जातीय समीकरणों को साधने की भी कोशिश करेगी।

सपा की चुनौती

सपा के लिए मिल्कीपुर सीट पर जीत घोसी के प्रदर्शन को दोहराने जैसा होगा। पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने इस चुनाव को लेकर पहले ही सक्रियता दिखानी शुरू कर दी है। सपा ने गठबंधन दलों के साथ मिलकर एक संयुक्त रणनीति तैयार की है। पार्टी दलित, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय को साधने की कोशिश करेगी, जो इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

स्थानीय मुद्दे और मतदाताओं का मूड

मिल्कीपुर में स्थानीय मुद्दे भी इस चुनाव में अहम भूमिका निभाएंगे। किसानों की समस्याएं, युवाओं के लिए रोजगार, और क्षेत्रीय विकास की मांग जैसे मुद्दे मतदाताओं के फैसले को प्रभावित कर सकते हैं। भाजपा जहां अपने “डबल इंजन सरकार” के नारे के साथ उतरेगी, वहीं सपा स्थानीय विकास के मुद्दों और भाजपा की नीतियों की आलोचना कर वोट मांगने की कोशिश करेगी।

जातीय समीकरणों की भूमिका

मिल्कीपुर का जातीय समीकरण इस चुनाव का सबसे अहम पहलू है। यादव, मुस्लिम, ब्राह्मण और दलित वोटरों की भूमिका नतीजों को तय करेगी। भाजपा जहां सभी जातियों को साधने की कोशिश करेगी, वहीं सपा अपने पारंपरिक वोट बैंक को मजबूत करने पर ध्यान देगी।

क्या दोहराया जा सकेगा घोसी का इतिहास?

घोसी की जीत सपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी, लेकिन मिल्कीपुर का समीकरण अलग है। भाजपा की जमीनी पकड़ और सपा की रणनीति के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि मतदाता किसे चुनते हैं। मिल्कीपुर उपचुनाव सपा और भाजपा दोनों के लिए अहम है। यह चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों की दिशा भी तय कर सकता है। क्या सपा घोसी की तरह बाजी मारेगी, या भाजपा इस बार मजबूत वापसी करेगी, इसका फैसला 8 फरवरी को होगा।

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