अमेरिका ने दशकों से एक ही कूटनीतिक रणनीति अपनाई है, जो वैश्विक संघर्षों में एक पैटर्न बन चुकी है: क्षेत्रीय तनाव उत्पन्न करना, युद्धों को बढ़ावा देने के लिए हथियारों की आपूर्ति करना, मध्यस्थता के रूप में अपनी भूमिका प्रस्तुत करना, और अंत में युद्ध पश्चात पुनर्निर्माण में अमेरिकी कंपनियों को लाभ पहुंचाना। इस पैटर्न से अमेरिका अपनी वैश्विक राजनीतिक स्थिति को मजबूत करता है, वहीं अमेरिकी सैन्य-औद्योगिक परिसर और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए फायदे सुनिश्चित करता है।
रूस-यूक्रेन युद्ध इसका एक मौजूदा उदाहरण है, जहां अमेरिका ने यूक्रेन को हथियारों की आपूर्ति कर लाखों डॉलर का लाभ उठाया। दूसरी ओर, भारत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अमेरिकी मध्यस्थता को सख्ती से नकारा, खासकर भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान। भारत ने स्पष्ट किया कि कश्मीर और अन्य मुद्दे केवल द्विपक्षीय बातचीत से हल होने चाहिए, न कि तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से।
अमेरिकी रणनीति में चार मुख्य चरण होते हैं:
- उत्तेजना: क्षेत्रीय असुरक्षा को बढ़ावा देना।
- हथियार आपूर्ति: युद्ध के दौरान एक पक्ष को भारी हथियारों की आपूर्ति करना।
- कूटनीतिक हस्तक्षेप: युद्ध के बाद शांति के नाम पर मध्यस्थता करना।
- पुनर्निर्माण: अमेरिकी कंपनियों को पुनर्निर्माण कार्यों में लाभ मिलना।
भारत ने इस मॉडल को खारिज करते हुए अपनी रणनीतिक स्वायत्तता को बनाए रखा। प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया कि भारत अपनी समस्याओं को स्वयं हल करने में सक्षम है, और बाहरी हस्तक्षेप से बचने के लिए मजबूती से खड़े रहे। इस दृष्टिकोण से भारत ने यह साबित किया कि स्वायत्तता और संतुलित कूटनीति ही देशों को अमेरिकी युद्ध-लाभकारी मॉडल से बचने का रास्ता दिखा सकती है।