इंडियन एयरोस्पेस एंड डिफेंस की हालिया रिपोर्ट यह दर्शाती है कि ऑपरेशन सिंदूर केवल एक सैन्य मिशन नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता और स्वदेशी सैन्य शक्ति का स्पष्ट प्रदर्शन है। यह ऑपरेशन भारत की उस नई पहचान को दर्शाता है जहाँ देश अब केवल रक्षा आयातक नहीं, बल्कि नवाचार-आधारित सुरक्षा समाधान का उत्पादक बन चुका है।
पिछले एक दशक में भारत ने खुद को एक उभरती हुई ताक़त के रूप में स्थापित किया है। 4.19 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनकर, भारत अब केवल वैश्विक प्रवृत्तियों का अनुकरण नहीं करता, बल्कि उन्हें आकार देता है। इस परिवर्तन का केंद्र है – मेक इन इंडिया, जो 2014 में लॉन्च हुई एक निर्णायक पहल थी। इसने भारत को वैश्विक विनिर्माण के एक निष्क्रिय प्रतिभागी से एक सक्रिय, रणनीतिक शक्ति में बदल दिया।
रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता की नई कहानी
भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता है, लेकिन इससे भी बड़ी छलांग रक्षा उत्पादन में देखी जा रही है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के अनुसार, 2015–19 और 2020–24 के बीच भारत के रक्षा आयात में 9.3% की कमी आई है। यह गिरावट भारत की घरेलू निर्माण क्षमताओं और नीतियों में बदलाव का प्रमाण है, जिसने विदेशी निर्भरता को रणनीतिक रूप से चुनौती दी है।
मेक इन इंडिया के ज़रिए भारत अब रक्षा, स्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर्स जैसे क्षेत्रों में न केवल आत्मनिर्भर हुआ है, बल्कि इन क्षेत्रों को राष्ट्रीय सुरक्षा के स्तंभ के रूप में भी पुनर्परिभाषित किया है। रक्षा क्षेत्र में यह बदलाव केवल उत्पादन का नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच और नवाचार का है।
आंकड़ों में दिखता प्रभाव
2023-24 में भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन ₹1.27 लाख करोड़ तक पहुंचा। निर्यात भी ₹23,622 करोड़ तक पहुंचा – जो कि एक दशक पहले की तुलना में दस गुना अधिक है। 2029 तक यह ₹50,000 करोड़ तक पहुंच सकता है, और 90 से अधिक देश भारतीय प्रणालियों को अपना सकते हैं। निजी क्षेत्र ने भी ₹15,000 करोड़ का उत्पादन कर यह सिद्ध किया है कि भारत का रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र अब परिपक्व हो चुका है।
1,300 से अधिक डीप-टेक स्टार्टअप, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम टेक्नोलॉजी, साइबर सिक्योरिटी और रोबोटिक्स जैसे क्षेत्रों में रक्षा समाधान विकसित कर रहे हैं। ये स्टार्टअप्स अब केवल प्रयोग नहीं कर रहे – बल्कि भारत की सॉवरेन कैपेबिलिटी के सह-विकासक बन चुके हैं।
ऑपरेशन सिंदूर: स्वदेशी ताक़त की संपूर्ण झलक
इस ऑपरेशन में उपयोग हुई तकनीकें जैसे कि मेड-इन-इंडिया ब्रह्मोस और आकाश मिसाइलें, भारत की युद्ध तैयारी में आत्मनिर्भरता का प्रमाण हैं। आकाश प्रणाली, जो DRDO द्वारा विकसित और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा सुसज्जित है, सीमाओं पर सटीकता और समन्वय का प्रतीक बनी। इसके नए डिजिटल संस्करण ‘आकाशतीर’ ने रीयल-टाइम डेटा को इंटीग्रेट कर नेटवर्क आधारित युद्ध रणनीति को मजबूत किया।
DRDO के पूर्व निदेशक प्रहलाद रामाराव का कथन – “500 करोड़ में इतनी सटीक और प्रभावी प्रणाली दुनिया में कहीं नहीं बन सकती” – भारत की लागत-प्रभावी लेकिन घातक क्षमता को रेखांकित करता है।
निष्कर्ष: आत्मनिर्भरता से ताक़त तक का सफर
ऑपरेशन सिंदूर सिर्फ एक सैन्य कार्रवाई नहीं था, यह भारत की रणनीतिक और तकनीकी पहचान का पुनर्जन्म था। यह इस बात का प्रमाण है कि जब राष्ट्र तकनीकी रूप से आत्मनिर्भर होता है, तो वह न केवल अपनी सीमाओं की रक्षा करता है, बल्कि वैश्विक मंच पर निर्णायक भूमिका निभाने लगता है। मेक इन इंडिया अब केवल एक नीति नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा रणनीति का केंद्रीय स्तंभ बन चुका है।