Uttarakhand Disasters: उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। एक ऐसा प्रदेश जहां पहाड़, नदियां और तीर्थ यात्राएं जीवन का हिस्सा हैं। लेकिन इसी प्राकृतिक सौंदर्य के बीच छिपा है एक ऐसा खतरा, जो हर कुछ सालों में कहर बनकर टूटता है। बादल फटना, अचानक बाढ़, भूस्खलन और ग्लेशियर फटना…..
प्रकृति की सुंदरता के बीच छिपा विनाश का भय
ये घटनाएं उत्तराखंड की एक कड़वी सच्चाई बन चुकी हैं। राज्य के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में हर साल ऐसे हादसे सैकड़ों जानें ले लेते हैं और हजारों लोगों की जिंदगी प्रभावित कर जाते हैं। ऐसे में आइए एक नजर डालते हैं अब तक के हुए हादसों पर…
उत्तराखंड में अब तक के बड़े हादसे
6 जुलाई 2004 | चमोली (बद्रीनाथ क्षेत्र)
बादल फटने से 5,000 यात्री फंस गए थे, 17 लोगों की मौत हुई थी।
3 अगस्त 2012 | उत्तरकाशी (अस्सी गंगा क्षेत्र)
बादल फटने से आई बाढ़ में 35 लोगों की जान चली गई थी।
13 सितंबर 2012 | रुद्रप्रयाग (ऊखीमठ)
बादल फटने की घटना में 69 लोग मारे गए।
16 जून 2013 | केदारनाथ त्रासदी
चौराबाड़ी झील के फटने से केदारनाथ में भारी तबाही मची।
➤ अनुमानित 6,054 लोगों की मौत हुई,
➤ मृतकों में अधिकांश तीर्थयात्री थे।
➤ इसे भारत की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदाओं में गिना जाता है।
1 जुलाई 2016 | पिथौरागढ़ (डीडीहाट तहसील)
बादल फटने से 22 लोगों की मौत हुई।
14 अगस्त 2017 | धारचूला (सिमखोला गाड़, मालपा गाड़)
भारी बारिश और बाढ़ से 27 लोगों की मौत हो गई।
12 अगस्त 2019 | चमोली (घाट क्षेत्र)
बादल फटने से 6 लोगों की जान चली गई।
18 अगस्त 2019 | उत्तरकाशी (आराकोट क्षेत्र)
बादल फटने से 21 लोगों की जान गई।
19 जुलाई 2020 | पिथौरागढ़ (मदकोट, टांगा)
बादल फटने से 3 लोगों की मौत हुई।
📍 20 जुलाई 2020 | पिथौरागढ़ (टांगा गांव)
बादल फटने से 11 लोगों की मौत हुई।
18 अगस्त 2020 | उत्तरकाशी (मोरी गांव)
बाढ़ की चपेट में आकर 12 लोगों की जान चली गई।
7 फरवरी 2021 | चमोली (ऋषि गंगा घाटी)
ग्लेशियर टूटने और फ्लैश फ्लड से
➤ 204 लोगों की मौत हुई
➤ इनमें से 80 शव बरामद, 124 लोग आज भी लापता
18 जुलाई 2021 | उत्तरकाशी (मांडो गदेरा)
तेज बारिश से आए सैलाब में 4 लोगों की मौत।
30 अगस्त 2021 | पिथौरागढ़ (जुम्मा गांव, धारचूला)
बाढ़ से 7 लोगों की जान गई।
20 जुलाई 2022 | चमोली (फूलों की घाटी)
बाढ़ के कारण 163 पर्यटक फंसे, राहत अभियान चलाकर बचाया गया।
नवंबर 2023 | उत्तरकाशी (सिलकराया टनल हादसा)
टनल निर्माण के दौरान 47 मज़दूर फंस गए थे, जिन्हें 17 दिन के बाद सुरक्षित बाहर निकाला गया।
प्रकृति से लड़ना नहीं, समझना होगा
उत्तराखंड में हर वर्ष सामने आने वाली ये घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना अब सिर्फ जिम्मेदारी नहीं, ज़रूरत बन चुका है। बढ़ते निर्माण कार्य, वनों की कटाई, और अनियोजित विकास ने आपदाओं को और खतरनाक बना दिया है।
सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन और सतर्कता के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर स्थानीय लोगों की जागरूकता, स्थाई विकास की नीतियां, और जलवायु परिवर्तन की दिशा में ठोस पहल ही उत्तराखंड को आने वाली आपदाओं से बचा सकती है।