इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार को एक महत्वपूर्ण निर्देश दिया, जिसमें एफआईआर, पुलिस दस्तावेजों, सार्वजनिक अभिलेखों, मोटर वाहनों और सार्वजनिक साइनबोर्ड से जातिगत संदर्भ हटाने के लिए व्यापक आदेश जारी किए। न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर की पीठ ने समाज में जातिगत महिमामंडन की प्रवृत्ति पर कड़ी आपत्ति जताते हुए इसे राष्ट्र-विरोधी करार दिया।

कोर्ट ने यह भी कहा कि समाज में जातिगत पहचान को बढ़ावा देने की बजाय, हमें संविधान के प्रति श्रद्धा और देशभक्ति को सर्वोच्च मान्यता देनी चाहिए। न्यायालय ने यह भी बताया कि अगर भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनना है, तो जातिवाद को समाज से पूरी तरह समाप्त करना अनिवार्य है।

न्यायमूर्ति दिवाकर की पीठ ने इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि जातिवाद को खत्म करने के लिए एक व्यापक कानून की आवश्यकता है, और सरकार के विभिन्न स्तरों से प्रगतिशील नीतियां, भेदभाव-विरोधी कानून, और सामाजिक परिवर्तन कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी।

कोर्ट ने जातिगत संदर्भ को केवल कानूनी दस्तावेजों से ही नहीं, बल्कि समाज के हर क्षेत्र से समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत पर जोर दिया। कोर्ट ने यह चेतावनी दी कि यदि अभियुक्त की जाति को कानूनी दस्तावेजों में लिखा जाता है तो यह पूर्वाग्रह को बढ़ावा देता है, न्यायिक सोच को दूषित करता है और संविधान के प्रति सम्मान को कमजोर करता है।

इस फैसले ने एक नई दिशा का संकेत दिया है, जिसमें जातिवाद से मुक्त समाज की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। उच्च न्यायालय ने यह निर्देश सरकार को दे कर समाज में सकारात्मक बदलाव की उम्मीद जताई है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेशसरकार को निम्नलिखित निर्देश जारी किए-:

  1. एफआईआर, रिकवरी मेमो, गिरफ्तारी और आत्मसमर्पण मेमो, पुलिस की अंतिम रिपोर्ट और पुलिस थानों के नोटिस बोर्ड से जाति संबंधी कॉलम हटाएँ।
  2. पहचान के लिए पिता/पति के नाम के साथ माता का नाम भी जोड़ें।
  3. मोटर वाहन नियमों में संशोधन करके निजी और सार्वजनिक वाहनों से जाति पहचान चिह्न और नारे हटाएँ।

4. गाँवों, कस्बों या कॉलोनियों को जाति क्षेत्र घोषित करने वाले जाति-आधारित साइनबोर्ड हटाना सुनिश्चित करें।

  1. आईटी नियम, 2021 के तहत सोशल मीडिया पर जाति-प्रशंसा करने वाली सामग्री के खिलाफ निगरानी और रिपोर्टिंग तंत्र के साथ कार्रवाई करें।

न्यायालय ने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि वह फैसले की एक प्रति उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को भेजें, जो इसे मुख्यमंत्री, केंद्रीय गृह सचिव, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय तथा भारतीय प्रेस परिषद के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।

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