Why US Army Attacked on Iran: इजरायल और ईरान की जंग अब एक खतरनाक मोड़ पर आ चुकी है। अब इस लड़ाई में अमेरिका भी कूद चुका है — वो भी पूरी तैयारी के साथ। बीती रात अमेरिका ने ईरान पर हमला कर दिया। लेकिन सवाल ये उठता है कि अमेरिका को आखिर क्या जरूरत पड़ी इस जंग में कूदने की?
अमेरिका ने हमला कहां से किया?
हिंद महासागर में अमेरिका-ब्रिटेन के डिएगो गार्सिया बेस से उड़े B-2 स्पिरिट बॉम्बर विमानों ने ईरान के तीन सबसे खतरनाक परमाणु ठिकानों — फोर्डो, नतांज और इस्फाहान — को निशाना बनाया। सबसे ज्यादा बमबारी फोर्डो पर की गई, जो जमीन से 90 मीटर नीचे बना हुआ है।
डोनाल्ड ट्रंप ने खुद ट्वीट कर इस हमले की जानकारी दी और कहा कि अब वक्त है शांति का। मगर दुनिया भर में एक ही सवाल गूंज रहा है — अमेरिका आखिर जंग में क्यों उतरा?
आइए 5 पॉइंट्स में समझते हैं अमेरिका की “मजबूरी”
कूटनीति फेल हो चुकी थी
अमेरिका पहले इस जंग में कूदना नहीं चाहता था। लेकिन ट्रंप सरकार का मानना था कि डिप्लोमेसी अब बेअसर हो चुकी है। जब बातचीत से कुछ नहीं हुआ, तब हमला करना जरूरी समझा गया।
अयातुल्ला खामेनेई भी टारगेट पर
ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई, जो अब एक बंकर में छिपे हैं, अमेरिका और इजरायल की नजर में मुख्य टारगेट हैं। अमेरिका जानता है कि अगर किसी को वो बंकर उड़ा सकता है — तो सिर्फ वही।
परमाणु ठिकानों का सफाया जरूरी था
अमेरिका को शक है कि ईरान न्यूक्लियर बम बना रहा है। फोर्डो जैसी गहराई में बने ठिकानों को खत्म करना अमेरिका की सबसे बड़ी प्राथमिकता थी। “अगर अब नहीं रोका गया, तो बाद में बहुत देर हो जाएगी” — अमेरिका यही सोच रहा है।
न्यूक्लियर प्रोग्राम का डर
ईरान कहता है वो बम नहीं बना रहा, लेकिन उसका न्यूक्लियर प्रोग्राम अमेरिका और इजरायल दोनों को बेचैन कर रहा है। अमेरिका ने कई बार कहा है — “ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देंगे, चाहे जो हो जाए।”
मुस्लिम देशों की एकता का खतरा
अगर ईरान परमाणु शक्ति बनता है, तो कई मुस्लिम देश उसका साथ दे सकते हैं, जिससे अमेरिका की दुनिया में पकड़ कमजोर हो सकती है। अमेरिका एक नई महाशक्ति बनने नहीं देना चाहता — खासकर मुस्लिम ब्लॉक से।