उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने गुरुवार को न्यायपालिका को लेकर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि लोकतंत्र में ऐसी स्थिति नहीं हो सकती, जहां अदालतें राष्ट्रपति को निर्देश दें। उन्होंने दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास से भारी मात्रा में नकदी बरामद होने के मामले पर भी अपनी प्रतिक्रिया दी और न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए।

न्यायमूर्ति वर्मा के मामले पर उठाए सवाल

राज्यसभा के प्रशिक्षुओं के छठे बैच को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास से नकदी बरामदगी के मामले पर कहा, “14 और 15 मार्च की रात को नई दिल्ली में एक जज के घर पर एक घटना घटी। सात दिनों तक इस बारे में किसी को जानकारी नहीं मिली।” उन्होंने इस पर सवाल उठाया कि क्या यह देरी स्वीकार्य है और क्या इस मुद्दे पर न्यायपालिका की प्रतिक्रिया माफ़ी योग्य है।

न्यायमूर्ति वर्मा पर विशेष अनुमति की आवश्यकता क्यों?

धनखड़ ने इस मामले में यह भी पूछा कि क्यों न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता है, जबकि किसी भी अन्य नागरिक के खिलाफ सामान्य प्रक्रिया से मामला दर्ज किया जा सकता है। उन्होंने कहा, “भारत के संविधान में केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को अभियोजन से छूट दी गई है, तो फिर न्यायमूर्ति वर्मा को ये विशेष छूट क्यों मिली?”

न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों पर सवाल

उपराष्ट्रपति ने यह भी सवाल किया कि न्यायिक मामले की जांच के लिए तीन न्यायाधीशों की समिति क्यों बनाई गई और क्या इसे संसद द्वारा पारित किसी कानून के तहत अनुमोदित किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि जांच कार्यपालिका का अधिकार है, और इसे न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र में नहीं डालना चाहिए।

राष्ट्रपति को निर्देश देने पर कड़ी टिप्पणी

धनखड़ ने हाल ही में एक न्यायिक फैसले में राष्ट्रपति को दिए गए निर्देशों पर भी कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “हम कहां जा रहे हैं? क्या हो रहा है देश में? हमें बेहद संवेदनशील होना चाहिए।” उनका यह भी कहना था कि राष्ट्रपति को समयबद्ध तरीके से निर्णय लेने के लिए कहा जाता है, और अगर वह नहीं करते, तो यह कानून बन जाता है, जो कि लोकतंत्र के सिद्धांतों के खिलाफ है।

न्यायपालिका पर आरोप

उन्होंने आगे कहा कि न्यायपालिका अब कानून बना रही है और कार्यपालिका का काम कर रही है, जबकि उन पर कोई जवाबदेही नहीं है। “अनुच्छेद 142 अब लोकतांत्रिक ताकतों के खिलाफ एक परमाणु मिसाइल बन गया है,” उन्होंने कहा। धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के तहत न्यायपालिका का एकमात्र अधिकार अनुच्छेद 145(3) के तहत संविधान की व्याख्या करना है, जिसमें पांच या उससे अधिक न्यायाधीशों की आवश्यकता होती है।

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