उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की कुंडा विधानसभा सीट से विधायक और जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के राष्ट्रीय अध्यक्ष रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने हाल ही में भारत समाचार के एडिटर इन चीफ ब्रजेश मिश्रा के साथ पॉडकास्ट में संविधान को लेकर बड़ा बयान दिया। राजा भैया ने कहा कि संविधान में मौजूद ‘समाजवाद’ और ‘सेक्युलर’ शब्दों को हटाया जाना चाहिए, ताकि यह मूल भावना के अनुरूप हो।

उन्होंने जोर देकर कहा कि हमारे संविधान की प्रस्तावना, जिसे संविधान की आत्मा भी कहा जाता है, उसी रूप में रहनी चाहिए, जैसा इसे संविधान सभा ने तैयार किया था। राजा भैया ने तर्क दिया कि संविधान के विद्वानों ने मूल रूप से इन शब्दों को प्रस्तावना में शामिल नहीं किया था। उन्होंने कांग्रेस पर भी कटाक्ष किया और कहा कि कई देशों में संविधान का कोई महत्व नहीं होता, जबकि जिन देशों में संविधान है, वहां उसकी प्रस्तावना उसकी आत्मा को दर्शाती है।

राजा भैया ने याद दिलाया कि भारतीय संविधान का निर्माण बाबा साहेब अंबेडकर, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, सरोजिनी नायडू और अन्य विद्वानों ने किया था। उन्होंने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति बाबू राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता में संविधान सभा ने संविधान तैयार किया। वहीं, उन्होंने यह भी कहा कि 1976 में इमरजेंसी के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान की प्रस्तावना में संशोधन कर दिया था, जो उनके अनुसार तानाशाही का उदाहरण था।

राजा भैया ने सवाल उठाया कि क्या इस संसोधन का मतलब यह था कि इंदिरा गांधी बाबा साहेब अंबेडकर या सरदार पटेल से अधिक विद्वान बन गई थीं। उन्होंने कहा कि यह संसोधन केवल इमरजेंसी के समय कांग्रेस की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा था और इसने संविधान की मूल भावना को प्रभावित किया।

विधायक ने आगे कहा कि समाजवादी आंदोलन और समाजवादी पार्टी की नींव में हमेशा कांग्रेस विरोध की भावना रही है। राजा भैया ने यह भी कहा कि अगर आज लोहिया या आचार्य नरेंद्र देव जीवित होते, तो वे कांग्रेस के साथ समझौता नहीं करते। उन्होंने दोहराया कि संविधान की प्रस्तावना, जैसा इसे संविधान सभा में तय किया गया था, उसी स्वरूप में रहनी चाहिए और इस मुद्दे पर उन्होंने पहले विधानसभा में भी अपनी बात रखी थी।

राजा भैया का यह बयान संविधान की मूल अवधारणा और वर्तमान राजनीतिक परिवेश में प्रस्तावना के महत्व पर एक नई बहस का संकेत देता है।

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