न्यायमूर्ति पारदीवाला ने न्यायिक अधिकारियों को ‘‘नींव का पत्थर करार दिया जिनपर न्याय की पूरी इमारत टिकी हुई है.” उन्होंने जिला न्यायपालिका के अधिकारियों से आह्वान किया कि वे किसी भी कीमत पर भय और पक्षपात से बचें ताकि ‘‘नदी रूपी न्यायपालिक स्वच्छ”रहे.
उन्होंने कहा, ‘‘ न्यायपालिका का सदस्य होने के नाते आप न्याय देने का पवित्र कार्य कर रहे हैं और इसलिए निरंतर मूल्यों के सिद्धांत का अनुपालन कानून के तहत धर्म की तरह किया जाना चाहिए.”
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘‘ पहला और सबसे आवश्यक यह है कि न्यायिक अधिकारी के तौर पर यह आत्मसात कर लीजिए कि अपका व्यवहार अदालत के भीतर और बाहर ऐसा होना चाहिए जो आलोचकों को नहीं उकसाए.”
उन्होंने कहा,‘‘अगर लोग मानेंगे कि आपका फैसला पक्षपातपूर्ण तो वे न्यायिक प्रक्रिया पर संदेह करेंगे और न्यायिक प्रक्रिया की नदी प्रदूषित हो जाएगी. यह हमारा कर्तव्य है कि इस नदी को साफ रखा जाए। निष्पक्षता न्यायाधीश की पहचान है.”
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका नामक संस्था की सफलता को मापने का ‘‘वास्तविक पैमाना” जनता द्वारा उसके प्रति व्यक्त किया जाने वाला विश्वास है.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए गुजरात उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरविंद कुमार ने राज्य में लंबित मुकदमों का मुद्दा उठाया.
उनके द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक राज्य में कुल 18,80,236 मुकदमें लंबित है जिनमें से 51.50 प्रतिशत मामले अकेले चार जिलों अहमदाबाद, सूरत, राजकोट और वडोदरा के हैं.
उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने भी सम्मेलन को वीडियो कांफ्रेंस के जरिये संबोधित किया। गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल और न्यायमूर्ति एमआर शाह ने भी इस सम्मेलन में हिस्सा लिया.
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