समझौते का क्या हुआ?
समझौते के तहत रूस ने काला सागर क्षेत्र में अनाज के जहाजों पर हमला नहीं करने का वादा किया था. लेकिन यह वादा ज्यादा दिन नहीं चला. सौदे पर हस्ताक्षर के 24 घंटे से भी कम समय में रूसी मिसाइलों ने ओडेसा के महत्वपूर्ण यूक्रेनी बंदरगाह पर हमला किया.
द कन्वर्सेशन पत्रिका के अनुसार वांडिले सिहलोबो (सीनियर फेलो, कृषि अर्थशास्त्र विभाग, स्टेलनबोश विश्वविद्यालय) कहते हैं कि इस हमले से सौदे के कमजोर होने की संभावना है. इसके अलावा, अनाज व्यापारी इस क्षेत्र में हाथ डालने से हिचक सकते हैं क्योंकि वे इसे बहुत जोखिम भरा मान सकते हैं. इससे सौदे का अमल में आना रूक सकता है.
लेकिन अगर रूस अपने वादे पर कायम रहता है, तो लाभ तत्काल होगा. विश्व बाजार में अधिक अनाज की आपूर्ति उपलब्ध होने से अनाज की कीमतों में नरमी आ सकती है. कुल मिलाकर यह उपभोक्ताओं, विशेष रूप से अफ्रीका जैसे गरीब और विकासशील देशों में रहने वाले लोगों को राहत मिलेगी.
कीमतों में संभावित नरमी से वैश्विक अनाज की कीमतों की पहले से ही सकारात्मक तस्वीर और भी उजली हो जाएगी, जो रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के बाद के हफ्तों में देखे गए रिकॉर्ड स्तरों से नीचे आ गई है.
अनाज की कीमतों पर होगा मामूली असर
वैसे, अनाज की कीमतों पर सौदे का असर मामूली रहने की संभावना है. अनाज की कीमतें युद्ध पूर्व के स्तर पर लौटने की संभावना नहीं है. संघर्ष से पहले के दो वर्षों में कई कारक कृषि कीमतों को बढ़ा रहे थे. इनमें दक्षिण अमेरिका, पूर्वी अफ्रीका और इंडोनेशिया में सूखा शामिल है और चीन में अनाज की बढ़ती मांग ने वैश्विक अनाज आपूर्ति को प्रभावित किया है.
रूस और यूक्रेन के बीच सौदे के परिणामस्वरूप संभावित कीमतों में गिरावट और आपूर्ति में वृद्धि से मध्यम अवधि में सभी आयातक देशों और उपभोक्ताओं को लाभ होने की संभावना है.
यह मान लिया जाए कि सौदा अमल में आता है – और शिपिंग लाइनें ऑर्डर लेना और अनाज ले जाना शुरू करती हैं.
अफ्रीकी दृष्टिकोण से, महाद्वीप एक वर्ष में लगभग 80 अरब अमरीकी डालर के कृषि उत्पादों का आयात करता है, मुख्य रूप से गेहूं, ताड़ का तेल और सूरजमुखी के बीज. उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र से वार्षिक खाद्य आयात बिल लगभग 40 अरब अमरीकी डालर प्रति वर्ष है.
इसलिए, भले मामूली ही हो, इन वस्तुओं की कीमतों में संभावित गिरावट आयात करने वाले देशों के लिए सकारात्मक होगी – और अंततः उपभोक्ताओं के लिए.
महत्वपूर्ण रूप से, अफ्रीका रूस से 4 अरब अमरीकी डालर के कृषि उत्पादों का आयात करता है, जिनमें से 90 प्रतिशत गेहूं और 6 प्रतिशत सूरजमुखी के बीज हैं. प्रमुख आयातक देश मिस्र (50 प्रतिशत) हैं, इसके बाद सूडान, नाइजीरिया, तंजानिया, अल्जीरिया, केन्या और दक्षिण अफ्रीका हैं.
अनाज के बढ़ेंगे ऑर्डर
इसी तरह, अफ्रीका यूक्रेन से 2.9 अरब अमरीकी डालर के कृषि उत्पादों का आयात करता है. इसमें से करीब 48 फीसदी गेहूं, 31 फीसदी मक्का और बाकी में सूरजमुखी का तेल, जौ और सोयाबीन शामिल हैं.
व्यापार गतिविधियों को फिर से शुरू करने से यूक्रेन से लगभग दो करोड़ 20 लाख टन अनाज निकलेगा. यह मान लेना भी सुरक्षित है कि रूस से दुनिया के विभिन्न बाजारों में अनाज के ऑर्डर भी बढ़ेंगे.
अफ्रीका के सबसे बड़े गेहूं आयातकों को यूक्रेन के बंदरगाहों से शिपमेंट की बहाली से सबसे अधिक लाभ होगा. अधिक सामान्यतः, कीमतों में नरमी से दुनिया भर के उपभोक्ताओं को लाभ होगा.
इसके अलावा, विश्व खाद्य कार्यक्रम पूर्वी अफ्रीका जैसे संघर्षरत अफ्रीकी क्षेत्रों में दान के लिए भोजन का स्रोत बनाने में सक्षम होगा, जहां सूखे की मार पड़ी है, और एशिया के कुछ हिस्सों में भी.
इसमें दो राय नहीं हैं कि इस सौदे के अमल में आने से यूक्रेनी किसानों को भी लाभ होगा. उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि अगर व्यापार दोबारा शुरू नहीं हुआ तो उनकी फसलें सड़ जाएंगी. सौदे से कुछ राहत की उम्मीद है और इससे नए सीजन की फसल के भंडारण के लिए जगह बनने की संभावना है.