इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया है। जिसमें कहा गया है कि भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के तहत कलेक्टर या अन्य अधिकारी पंजीकरण शुल्क में कमी की वसूली नहीं कर सकते। न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि इस अधिनियम में ऐसा कोई नियम नहीं है जो अधिकारियों को पंजीकरण शुल्क की कमी वसूलने का अधिकार देता हो। इसलिए, बिना किसी कानून के अधिकारी इस तरह की वसूली के लिए कोई आदेश नहीं दे सकते।

बता दें स्टाम्प ड्यूटी एक अप्रत्यक्ष कर है, जिसका मतलब है कि किसी लेन-देन या दस्तावेज़ को वैध बनाने के लिए ये शुल्क देना जरूरी है।

भारतीय स्टाम्प अधिनियम, 1899 के तहत, स्टाम्प का मतलब है कोई निशान, मुद्रा, या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति या एजेंसी द्वारा दिया गया मार्क।

इस अधिनियम की धारा 64 के मुताबिक, कम स्टाम्प लगाना एक तरह की चोरी मानी जाती है और यह एक दंडनीय अपराध है।

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